कहते हैं चाहिए, हिन्दूओं से आजादी,
कहते हैं की लेकर रहेंगे आजादी,
वंशज तुम जिनके, थे चाहते यही,
कर बैठै अपनी जान की बरबादी ।
निशंक याद रखना, हम हिन्दू हैं,
इस भारत माँ की संतान हैं,
माँ की लाज को गर आंच लगेगी,
उखाड़ देंगे तूझे, जो करे गद्दारी।
अगर इस देश में रहना होगा,
उसके तरीकों से जीना होगा,
माँ के आँचल के ढोंगी प्रहरी,
क्या शिक्षा सिखाती तुम्हें? दंगाई।
शिक्षा का है काम निराला,
फैलाए सब जग उजियारा,
जो जात-धर्म की बातें छोडी,
नाचे स्वयं वहां माँ सरस्वती।
Just tried to pen a few thoughts about the ongoing protests at a few places in India.
Ashamed about the media which just highlights all such stray incidents and keeps on giving them prime time. The fourth pillar of Democracy, the media, has sold out and is biased. They run a narrative to suit their TRP’s and create an image of backward India, a non developing and a non inclusive India.
मैं.आपके विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ।
इन गद्दारों का काम यही है। लोगों में सदा ही डर पैदाकरके अपने आमदनी को बढाते रहना। दशकों सालों से यही कर रहे हैं।
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🙏🙏🙏
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बचपन की कविता हृदय नहीं वह पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं याद आ गई 🙏🙏
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🙏🙏🙏
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संतुलित एवं बढ़िया कविता।👌👌
जिससे चाहत आजादी की,
उसने बेड़ी कब डाली,
प्रेम किया जिसने उसका ही
चाह रहे ये बर्बादी।
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Wah Dada…
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