आप सभीको हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।
आज के दिन कुछ ऐसी रचनाएँ आपके समक्ष रख रहा हूँ जिसने मेरा हिन्दी के प्रति लगाव बढाया। हालांकि मेरी मातृभाषा गुजराती है, अपितु हमारी पाठशाला के शिक्षकों ने हम सभी इतर भाषी बच्चों पर काफी मेहनत की है। बडे चाव से पढाया और राष्ट्रभाषा परीक्षाओं के लिए प्रवृत्त कीया एवं तैयारी भी करवायी। आज भी मैं मेरे गुरूजन शर्माजी तथा मिश्राजी का कृतज्ञ हूँ ।
आज के दिन, वाचकमित्रों, मैं अपनी सबसे मनपसंद कविता आप सभी के साथ साझा करना चाहूँगा । कविता जानी पहचानी है। कवि दुष्यंत कुमार की जुझारू कलम से लिखी गयी यह कविता हर पीढी को प्रेरणा देती रही है तथा देती रहेगी ।
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
उन्हीं की एक दूसरी कविता जो रग रग में एक विश्वास जगा देती है। वह भी यहाँ उद्धृत करता हूँ ।
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
ऐसी तो कई कविताएं। कईयों कवि। कईयों लेखक। जिनकी कोई गिनती नहीं! ऐसी सम्मृद्ध भाषा को मनाने का आज दिन है। तो आओ साथ मिलकर कुछ बातें करें?
Dono kavitaayein mujhe bahut achhi lagi. Maine pahli baar 9th class mein famous poet Dushyant Kumar ki kavita padhi. Mujhe inki kavitaayein bahut achi lagti hai.
Aapke blog ki first poem ko mai pahle bhi padh chuka hu.
Aapke iss blog se mujhe yeh bhi jaanne ko mila ki aapki mothertongue Maraathi nahi, Gujaraati hai….
Mujhe ye dono kavitaayein bahut achi lagi
LikeLiked by 3 people
🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person
:-
LikeLiked by 1 person
Bohot badhiya ….
hume bhi kuch yaad aaapki kavita se …per humara source lucknow me hai …pahuch ker batate bro 🙂
Bahut badhiya kavita hai dushyant ji ki
LikeLiked by 2 people
🙏🙏🙏
LikeLike
The richness of our language, our traditions, heritage can be felt in such beautiful prose. And as one digs deeper, its fragrance keeps on overwhelming us all over and over again. Yeh Mahan Diwas pe sabko hardik shubhkanaye.🙏🙏
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person
कितना खूबसूरत कविता पढ़ने का मौका दिया। वाकई दोनों कविताओं का क्या कहना। लाजवाब भाई जी।
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏 Madhusudan dada
LikeLike
अमित जी बहुत बधाई🙏
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏
LikeLike
अच्छी कविता के लिए
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏
LikeLike
Such beautiful lettering… I used Google Translate to read it in English, and honestly it is breathtaking poetry… thank you so much for sharing it… and thanks for all you do to bring awareness.
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person
वाह बहुत ही लाजवाब दोनों कविताएँ.. धन्यवाद साझा करने के लिए🙏😊
LikeLiked by 1 person
🙏🙏🙏
LikeLiked by 1 person
बहुत ही अच्छी रचना साझा की है आपने
LikeLiked by 1 person
शुक्रिया
LikeLiked by 1 person