आज एक कवि का जन्मदिन।
प्रभावी राजनेता का जन्मदिन।
निष्कपट तथा निष्कलंकित जीवन।
अजातशत्रु सा व्यक्तित्व।
वक्त्तृत्व के धनी।
राष्ट्र को समर्पित जीवन।
अटल जी जैसा व्यक्ति हमारी पीढ़ी को देखने मिला, यह हमारा सौभाग्य है। आज के बच्चों के लिए वह एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री के रूप में इतिहास मेँ पढाए जाते हैं। पर उन्हे या उनके जीवन को समझना यह आज के परिप्रेक्ष्य में उचित तथा अत्यावश्यक है। उनका बोलना, उनका जीवन, उनका दूसरों के प्रति व्यवहार हमें बहुत कुछ सिखाएगा।
एक ही बात आज कहकर मैं उनको अपनी अंजलि अर्पित करता हूँ । हिन्दी भाषा पर उनका प्यार इतना, की जब भारत के विदेश मंत्री के रूप में पहली बार जब संयुक्त राष्ट्र महासंघ को संबोधित करना था, तो उन्होंने स्थापित Protocol छोड़, अंग्रेजी के बजाय, हिन्दी में भाषण किया। यह एक बहुत बड़ा कदम रहा है। और इसलिए उनपर अगर कुछ लिखना है, तो हिन्दी में ही लिखना, यह उचित रहेगा।
उन्हीं की लिखीं कविताएँ यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ जिससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा उजागर होगी। उन कविताओं को वाचक पढें और उनको समझने की दिशा में आगे बढ़ें, यही शुभकामना करता हूँ।
(प्रस्तुत कविता उन्होंने भारत की आजादी के वक्त लिखीं हो ऐसा प्रतित होता है। बटवारे की व्यथा ईसमे साफ झलकती है। मानवता के खून तथा एक ही घर में साथ रहे दो भाई की दुश्मनावट और उसकी वजह से समाज का बिगड़ा वातावरण का चित्रण हमें झकझोर कर रख देता है। मानव संवेदना का ऐसी सटिक भाषा में चित्रण कम ही देखने को मिलता है।)
दूध में दरार पड़ गई।
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए;
कलेजे में कटार गड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गए नानक के छन्द
सतलुज सहम उठी,
व्यथित सी बितस्ता है;
वसंत से बहार झड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता,
तुम्हें वतन का वास्ता;
बात बनाएँ, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
(सन् १९७५ में आपातकाल के दिनों कारागार में लिखित रचना। प्रस्तुत कविता में अटल जी का करारापन, भाषा पर प्रभुत्व समझ में आता है। उनके जीवन में रही तेजस्विता का दर्शन होता है।)
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अँधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अन्तिम अस्त होती है।
दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प
वज्र टूटे या उठे भूकम्प,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।
किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
पुन: अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की माँग अस्वीकार।
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते;
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
(इस कविता में कवि की दीर्घ दृष्टि का दर्शन होता है। एक नकारात्मक अनुभूति से सकारात्मक अनुभूति का यह सफर है। जबरदस्त आत्मविश्वास तथा आत्मबल की झांकी है इस कविता में। इसी कविता में उनके जीवन का दर्शन होता है।)
दो अनुभूतियां
–पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
–दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं।
ऐसे अटल जी के लिए सिर्फ इतना ही कह सकते हैं की भारत माता ने एक सफल राजनेता पाने के लिए एक कवि खो दिया।
उनके जन्मदिवस पर सिर्फ भगवान से यही प्रार्थना की उनके जैसी राष्ट्र निष्ठा हमें प्रदान करें ।
अस्तु।
Wrote well. Partition was a tragedy which should have been averted
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But it was not averted due to and to satisfy a few egos…
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Ya. Due to recklessness, selfishness, egotism and short-sightedness on both sides
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Sorry to reply late . But, Amitbhai , your Hind is too good . And blog written on bhutpurva sanman niya Shri Atalji is very precise ly drafted. And effective
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Ty Bhau
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श्री अटल बिहारी वाजपेईके जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं
विपरीत परिस्थिति में भी संयमित भाषा कैसे कही जाती है उनसे हम सीख सकते हैं।।
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Wah
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Best wishes 🌹
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Ty
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Good way to tribute great leader like atalji
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Ty Bhai
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निष्कपट तथा निष्कलंकित जीवन।
This one was really true and such an achievement being in politics!!
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Yeah
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निष्कलंकित जीवन,अपनी मातृभूमि और हिंदी के लिए अभूतपूर्व प्रेम।विरले ही होते हैं ऐसे लोग।ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और पुनः जन्म दे तो भारत में ही दे क्योंकि ऐसे महापुरुषों की एक बार फिर हमारे वतन में जरूरत है।जंग पहले से ज्यादा भयावह है क्योंकि मतलबपरस्त बाहरी नहीं आज अपने हैं।
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Bahut badhiya sir
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
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Wah
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अटल जी निःशंक एक महात्मा थे…!
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हाँ
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Yeah thanks.
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